स्वतंत्रता दिवस: “आज़ादी” महज़ एक शब्द नहीं है एक एहसास है
कभी गौर से सोचो तो लगता है आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी कुछ है जिसने हमें कैद कर रखा है। कुछ ऐसा जो हमारी सोच पर हावी है और हमें आज़ाद होने नहीं देता, और तब तक नहीं देगा जब तक हम खुद नहीं चाहेंगे, जब तक हम खुद अपने आप को उस सोच के दायरे से बाहर नहीं निकालेंगे क्योंकि आज़ादी महज़ एक शब्द नहीं है एक एहसास है।
बात कुछ ज़्यादा गम्भीर नहीं थी जब तक मैं भी आम जनता की तरह उन धुल भरी सडकों के किनारे तिरंगा बेचते उन बच्चों को महज़ देखकर गुज़र जाया करता था मगर आज कुछ ऐसा हुआ जिसने सोचने का नज़रिया ही बदल दिया, यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या ये वही भारत है जिसकी कल्पना कभी हमारे सवतंत्रता सेनानी किया करते थे ?
बात आज सुबह की है, मैं अपने दोस्त के साथ लालपुर नाश्ता करने पहुंचा तभी वहां एक छोटा सा बच्चा कुछ 6-7 साल का हाथों में झंडे लिए अंदर आया। उसे भुख लगी थी शायद, उसने शब्दों में भले ही कुछ नहीं कहा हो मगर उसकी लालसा भरी नज़रों ने सब साफ साफ कह दिया। हमने उसे अपने पास बुलाया और नाश्ते के लिए पूछा।उसने अपनी घबराहट छुपाते हुए हिचकिचाते हुए हाँ कहा और हमने उसे अपने टेबल पर बिठा लिया।नाश्ता करते-करते मैंने उससे पूछ लिया कि वो ये सब क्यों कर रहा है इस उम्र में, दिल भारी सा हो गया उसका शायद फिर भी अपने शब्दों को संभालते हुए उसने कहा की ये सब वो बस दो वक्त की रोटी के लिए करता है।उसने बताया की वो दस रूपये और बीस रूपये के झंडे सुबह से वहीं सडक़ के किनारे बेच रहा है मगर कोई खरीद नहीं रहा।
कितना अजीब है ना? दोस्तों के साथ हर शाम घुमने फिरने में हम 100-200 तो यूँ ही उड़ा देते हैं और उस बच्चे को झंडे के बदले 10 रूपये देने में हमारी जेबें कितनी खाली हो जाती है।खयालों के समंदर में लहरें उठ ही रहीं थी, तभी मेरे दोस्त ने उससे उसका नाम पूछ लिया।उसने उसी मासूमियत से नाश्ता करते हुए बताया की उसका नाम शाहिद है और वो इस्लामनगर, रांची का रहने वाला है।मैं बहुत कुछ पूछना चाहता था उससे।उसकी इच्छाएं, उसके शौक, सब कुछ…!! मगर उसका नाश्ता खत्म हो चुका था, उसने अपने चहरे पर मुस्कराहट बिखेर कर प्यार भरी नज़रों से मेरी तरफ देखा, जैसे मुझे शुक्रिया कह रहा हो और निकल पड़ा उन्हीं धुल भरी सड़कों पर इस उम्मीद में की शायद उससे कोई वो झंडे खरीद लेगा, शायद आज रात वो खाना खा पाएगा….!!!
दिन यहीं खत्म नहीं हुआ, अभी तो उस बच्चे का ख्याल दिमाग से उतरा भी नहीं था कि तभी कांके सडक के पास एक 16-17 साल का लड़का हाँथों मे झंडा लिए मेरे पास आकर खडा हो गया। मैंने उससे झंडा लेते हुए उसका नाम पूछा, वो कुछ देर तक हाँथों मे झंडा लिए सर झुका कर खडा रहा थोडी देर बाद मेरी तरफ देखकर उसने कहा, “भईया हम मुसलमान हैं”।मैं कुछ समझ नहीं पाया।क्या होता है ये हिन्दू मुसलमान? क्या फर्क है? रहते दोनो एक ही देश मे हैं, प्यार देश से उतना ही है, तो क्यों है ये भिन्नता? मैने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा..“भाई हम हिन्दुस्तानी हैं” और उससे वह झंडा लेकर आगे निकल गया।सोचा चलो आज जिस दिन देश आज़ाद हुआ था मैंने एक इंसान को ही सही पर उसकी सोच से आज़ाद तो कर दिया।
15 अगस्त 1947 भारत के इतिहास में बहुत बडा दिन है क्योंकि इस दिन “देश आज़ाद हुआ था”, गौर कीजियेगा “देश आज़ाद हुआ था”।हम तो आज भी बंदी हैं अपनी ही सोच के, ना जाने अपनी आज़ादी कब मनाएंगे।